Jaishankar पाकिस्तान भाग लेने जा रहे हैं |

जयशंकर पाकिस्तान में एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं: एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक मील का पत्थर

विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर इस महीने के अंत में पाकिस्तान की ऐतिहासिक यात्रा पर जा रहे हैं, जहां वे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के प्रमुखों की भग यात्रा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह लगभग एक दशक में पहली बार है जब कोई भारतीय विदेश मंत्री इस्लामाबाद जा रहा है; अंतिम बार यह कार्य सुशमा स्वराज ने दिसंबर 2015 में किया था। स्वराज ने इस्लामाबाद में 8-9 दिसंबर, 2015 को हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रक्रिया की पांचवीं मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था।

जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा भारतीय कूटनीति में एक महत्वपूर्ण क्षण का संकेत है, खासकर दोनों देशों के बीच जटिल और अक्सर तनावपूर्ण संबंधों के संदर्भ में। वह 15-16 अक्टूबर को होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे, जहां वह भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे। यह शिखर सम्मेलन पाकिस्तान द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जो वर्तमान में एससीओ के प्रमुखों की परिषद का अध्यक्षता संभाल रहा है।

भारत-पाकिस्तान के संबंधों का इतिहास रहा है, विशेष रूप से 2016 के उरी आतंकवादी हमले के बाद, जिसने कूटनीतिक संबंधों पर गंभीर प्रभाव डाला। तब से, भारतीय सरकार ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन बंद नहीं करता, तब तक सार्थक संवाद संभव नहीं है। यह स्थिति भारत की पाकिस्तान के साथ जुड़ाव की रणनीति को आकार देती है, जिससे जयशंकर की आगामी यात्रा एक महत्वपूर्ण घटना बन जाती है, दोनों प्रतीकात्मक और कूटनीतिक रूप से।

हाल ही में नई दिल्ली में एक प्रेस ब्रीफिंग में, MEAप्रवक्ता रंधीर जैसवाल ने जयशंकर की प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता की पुष्टि की और सुझाव दिया कि संभावित चर्चाओं के बारे में विवरण बैठक की तारीख के करीब साझा किए जाएंगे। यह यात्रा न केवल भारत की कूटनीतिक स्तर पर जुड़ने की इच्छा को दर्शाती है, बल्कि के बीच द्विपक्षीय वार्ता की संभावनाओं के बारे में सवाल भी उठाती है।

ऐतिहासिक रूप से, भारतीय अधिकारियों और पाकिस्तान के बीच अंतिम महत्वपूर्ण बातचीत अगस्त 2016 में हुई थी, जब तब के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस्लामाबाद में SAARC की बैठक में भाग लिया था। 2018 में, दो केंद्रीय मंत्री करतारपुर कॉरिडोर के लिए आधारशिला समारोह में शामिल होने के लिए सीमा पार किए थे, जिसे संबंधों को आसान करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा गया था। हालांकि, तब से उच्चस्तरीय बैठकों की संख्या में काफी कमी आई है, जिससे जयशंकर की आगामी यात्रा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

जब एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय बैठक की संभावना के बारे में पूछा गया, तो MEA प्रवक्ता ने संकेत दिया कि योजनाएँ तारीख के करीब स्पष्ट की जाएंगी। यह बयान इस बारे में अटकलों के लिए जगह छोड़ता है कि क्या शिखर सम्मेलन के दौरान कोई सार्थक संवाद हो सकता है, जो तनावपूर्ण संबंधों के ऐतिहासिक संदर्भ को देखते हुए एक महत्वपूर्ण विकास होगा।

कूटनीतिक परिदृश्य में एक और आयाम जोड़ते हुए, MEA ने पाकिस्तान की उस निर्णय की सार्वजनिक रूप से आलोचना की है, जिसमें विवादास्पद इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक का स्वागत किया गया था, जो भारत में विभिन्न आरोपों के तहत वांछित है। जैसवाल ने पाकिस्तान में नाइक के गर्म स्वागत पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा, “हमें इस बात पर आश्चर्य नहीं है कि भारतीय न्याय से भागने वाले एक व्यक्ति का पाकिस्तान में उच्च स्तर पर स्वागत किया गया है। यह निराशाजनक और निंदनीय है, लेकिन आश्चर्यजनक नहीं है।” यह भारत में आतंकवाद के आरोपित व्यक्तियों के प्रति पाकिस्तान के रवैये को लेकर गहरी चिंताओं को दर्शाता है।

आतंकवाद और पाकिस्तान द्वारा ऐसी गतिविधियों का समर्थन द्विपक्षीय संबंधों में हमेशा से एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। भारत का मानना है कि जब तक पाकिस्तान इन गतिविधियों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाता, तब तक सार्थक संवाद संभव नहीं है। हाल ही में मलेशियाई प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान, MEA ने पुष्टि की कि भारत ने जाकिर नाइक के मुद्दे को उठाया, जो भारत की कूटनीतिक रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है।

व्यापक संदर्भ में, पाकिस्तान ने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस अक्टूबर में इस्लामाबाद में एससीओ बैठक में भाग लेने के लिए आधिकारिक निमंत्रण दिया था। जबकि यह स्पष्ट नहीं है कि मोदी निमंत्रण स्वीकार करेंगे या नहीं, यह इशारा क्षेत्रीय कूटनीति की जटिलताओं और दोनों देशों के बीच संभावित जुड़ाव को दर्शाता है।

इसलिए, आगामी एससीओ शिखर सम्मेलन भारतीय कूटनीति के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में उम्मीद जगाता है। यह न केवल जयशंकर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि भारत-पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित करने वाले विवादास्पद मुद्दों को हल करने का संभावित मार्ग भी है।

जैसे-जैसे शिखर सम्मेलन की तारीख नजदीक आती है, कई लोग यह देखने के लिए ध्यान केंद्रित करेंगे कि गतिशीलता कैसे विकसित होती है। क्या जयशंकर की पाकिस्तान में उपस्थिति निर्माणात्मक संवाद का नेतृत्व करेगी, या यह केवल दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही विभाजन को उजागर करेगी? इस सवाल का उत्तर भारत-पाकिस्तान के भविष्य और क्षेत्रीय स्थिरता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।

अंत में, डॉ. एस. जयशंकर की एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए पाकिस्तान यात्रा केवल एक कूटनीतिक जुड़ाव नहीं है; यह एक ऐसे संबंध में एक महत्वपूर्ण क्षण का प्रतीक है जो उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। के पृष्ठभूमि में, विश्व यह देखने के लिए उत्सुक है कि क्या यह यात्रा भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नए अध्याय का मार्ग प्रशस्त करती है, जो संवाद और आपसी समझ से चिह्नित हो। जैसे-जैसे स्थिति विकसित होती है, इस बात पर जोर निश्चित रूप से रहेगा कि कैसे सार्थक जुड़ाव की आवश्यकता है, जो दोनों देशों को प्रभावित करने वाले मूल मुद्दों को संबोधित करता है।

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